Read this article in Hindi to learn about the functions of female reproductive system in  human body.

मानव मादा के जनन तंत्र के अंतर्गत दो ओवरी, फेलोपियन ट्‌यूब गर्भाशय, सर्विक्स, और भग्नाशय (vagina) आते हैं । (चित्र 3.56) । इनमें से कुछ जैसे वेजाइना, वल्वा और स्तन बाहरी जननांग या सेकन्डरी सैक्स अंग माने जाते हैं । इन अंगों की रचना तथा कार्यो को संक्षिप्त रूप में नीचे दिया गया है ।

डिम्ब ग्रन्थियां:

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डिम्ब ग्रन्थियां की संख्या दो होती है जो गर्भाशय के दोनो और फेलोपियन ट्‌यूब के नीचे व पीछे स्थित होती है । यह बड़े बादाम के आकार की (10-20 ग्राम) होती है । प्रत्येक डिम्ब ग्रन्थि व्राडलिगामेन्ट की पिछली सतह से मीजोवेरियन (Mesovarian ligament) से जुड़े रहते है । ओवेरियन लिगामेंट इसे गर्भाशय से जोड़ते हैं ।

फेलोपियन ट्‌यूब का दूर वाला सिरा डिम्ब ग्रन्थि फिम्ब्रियल कप (Fimbrial cup) द्वारा ढका रहता है पर जुड़ा नहीं होता है । प्रत्येक डिम्ब ग्रन्थि नर्व, लिम्फ नलियों व रक्त नलियों द्वारा सप्लाई होती है, इसकी आन्तरिक सतह जर्मिनल इपीथीलियम की अकेली परत से बनी होती है, जबकि अन्दर के भाग मे हजारों ग्रेफियन फालिकिल कनेक्टिव टिश्यू में धँसे रहते हैं ।

जन्म से मीनार्के तक डिम्बग्रन्थि का भार बढ़ते हुए फालिकिल की बजह से बढ़ता जाता है । प्यूवर्टी के पश्चात लगभग प्रति माह 10-15 प्राइमरी फालिकिल स्टीमुलेटिंग हार्मोन (FSH) के प्रभाव से सेकेन्डरी फालिकिल मे परिवर्तित हो जाते है ।

चित्र 3.57 में फालिकिल की भिन्न स्टेजों को दिखाया गया है । इनमें से एक फालिकिल डिम्बोत्सर्जन (Ovulation) की क्रिया द्वारा डिम्ब, जो जोना पेलूसिडा तथा ग्रेनेलोसा कोशिकाओं से घिरी होती है, फेलोपियन ट्‌यूब के इन्फन्डीवुलम में पहुंचती है । चित्र (3.57) ।

फालिकिल के फूटने पर भिन्न कारनो का नियंत्रण होता है फिर भी कई बड़े हुये फालिकिलों में केवल एक का ही प्रति माह डिम्बोत्सर्जन होता है । इसका कारण ज्ञात नहीं है । डिम्ब ग्रन्थि का कार्य डिम्ब का निर्माण व उसको उत्सर्जन के अलावा हारमोन बनाने का कार्य भी करती है ।

इससे दो हारमोन इस्ट्रेजिन तथा प्रोजेस्टेरान का स्राव होता है । इस्ट्रोजेनिक स्टीरोयड इसट्राडियाल कहलाता है जो थीका इन्टर्ना से निकलता है तथा अन्य स्टीरायड प्रोजेसटेरान का निर्माण कार्पस ल्यूटियम (Corpus Luteum) से होता है ।

ये निम्न का नियंत्रण करते हैं:

i. प्रजनन अंगों का प्यूवर्टी के पश्चात विकास जैसे (वेजाइना) भगनाशय, गर्भाशय, फेलोपियन ट्‌यूब

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ii. मासिक धर्म

iii. सेकेन्ड्री सेक्स कैरेक्टरों का विकास – आवाज में परिवर्तन, वसा का पुन: व्यवस्थित करना, स्तनों का विकास

iv. गर्भावस्था के दौरान जैसे निषेचित अण्डे का रोपण और प्लेसेन्टा का विकास

फेलोपियन नलियां (यूटेराइन ट्रयूब या ओबीडक्ट):

युटेराइन ट्‌यूब यूटेरस के ऊपरी बाहरी किनारों से जुड़ी होती है । ये ब्राड लिगामेंट की परतों में स्थित होती है, तथा पहले ऊपर व बगल मे बढ़कर नीचे व पीछे मुड़ जाती है । ट्‌यूब का निर्माण गर्भाशय की तरह ही अन्दर से बाहर की ओर म्यूकस, स्मूथपेशी और सीरस परत से बनी होती है ।

इनकी म्यूकोसा बाहरी किनारे की तरफ सीलियायुक्त होती है । प्रत्येक ट्‌यूब का फैला हुआ भाग इन्फन्डीबुलम कहलाता है जिसमें उंगलियों की तरह के फिम्ब्रिया होती हैं । यहां इसकी म्यूकस मेम्ब्रेन पेरीटोनियम से जुड़ी होती है । यहीं से इन्फेकशन वेजाइना, गर्भाशय तथा ट्‌यूब से पेरीटोनियम में पहुंच कर पेरीटोनाइटिस कर सकता है ।

फेलोपियन ट्‌यूब के फिम्ब्रिया युक्त सिरे से डिम्ब ग्रहण किया जाता है जो यही परिपक्व व ट्‌यूब के एम्पुला वाले भाग में निषेचित होते हैं । शुक्राणु के वेजाइना से एम्पुला पहुंचने की क्रिया में शुक्राणुओं की गति के अलावा अन्य कई फैक्टर भी भाग लेते हैं । फेलोपियन  ट्यूब की म्यूकोसा में सिलियायुक्त कोशिकायें डिम्ब एवं शुक्राणुओं के जीवन के लिए आवश्यक हैं ।

गर्भाशय (Uterus):

गर्भाशय के दो भाग होते हैं- ऊपरी वाडी तथा नीचे वाला सर्विक्स । यौवनारम्भ (puberty) के पहले इसका वजन केवल 15 ग्राम के लगभग होती है जो यौवनारम्म के पश्चात् इस्ट्रोजन के प्रभाव में बढ़कर लगभग 50 ग्राम का हो जाता है । यूटेराइन ट्‌यूब के निकलने से ऊपर के उभरे भाग को फन्डस (Fundus) कहते है ।

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वाडी वाला भाग प्रमुख रूप से स्मूथ पेशियों से बना होता है जो तीन सतहों में व्यवस्थित होती है तथा सिम्पैथेटिक नर्व से सप्लाई होती हैं । मायोमीट्रियम की स्मूथ पेशियां भिन्न दिशाओं में स्थित होकर गर्भाशय को अधिक शक्ति देती हैं । मायोमीट्रियम फन्डस वाले भाग में सबसे मोटा तथा सर्विक्स में सबसे पतला होता है ।

मायोमीट्रियम को बाहर सीरसकोट (Serous Coat) तथा अन्दर म्यूकस कोट (Mucous Layer) होता है जिसे इन्डोमीट्रियम (Endometrium) कहते हैं । इन्डोमीट्रियम में भी तीन परतें होती है । सबसे अन्दर की कालुमुनर इपीथीलियम सतह, मध्य की स्पाजी लेयर तथा बाहरी कनेक्टिव टिश्यू लेयर जो इन्डोमीट्रियम और मायोमीट्रियम से जोड़ते हैं ।

मासिक के दौरान तथा बच्चे के जन्म के पश्चात् काम्पेक्ट तथा स्पान्जी सतहे गिर जाती हैं । मायोमीट्रियम की बाहरी सतह सीरस मेम्ब्रेन से ढकी होती है । पेराइटल पेरिटोनियम गर्भाशय की बाडी के केवल कुछ भाग को ढकता है अत: गर्भाशय की शल्यक्रिया बिना पेरीटोनियम काटे की जा सकती है । जिससे पेरिटोनाइटिस होने की सम्भावना कम हो जाती है ।

गर्भाशय का एपेक्स नीचे की ओर स्थित होता है । तथा इन्टरनल आस्र: बनाता है (चित्र 3.58) । जो सर्वाइकल कैनाल में खुलता है । सर्वाइकल कैनाल नीचे की ओर पतली होकर इक्सटरनल आस्र बनाती है जो वेजाइना में खुलती है ।

सामान्यतया गर्भाशय बाडी व सर्विक्स के बीच मुड़ा हुआ रहता है तथा वाडी, मूत्राशय की ऊपरी सतर पर आगे तथा ऊपर स्थित होती है । यह वेजाइना के जोड़ वाले स्थान पर लगभग 90 डिग्री के कोण पर मुड़ा रहता है (चित्र 3.59) ।

कई लिगामेंट गर्भाशय को स्थिर रखते हैं । गर्भाशय का प्रमुख कार्य मासिक स्राव व गर्म धारण है जिनके विषय में कुछ अंगों की रचना के बारे में बताने के पश्चात् विस्तृत रूप से बताया जायेगा ।

भग्नाशय:

वैजाइना का छिद्र यूरिथ्रा व रेक्टम के बीच स्थित होता है (चित्र 3.60) । बेजाइना स्मूथ पेशी से बनी होती है । इसकी आन्तरिक सतह म्यूकस मेम्ब्रेन से ढकी रहती है । इसकी लम्बाई 6-8 सेमी॰ होती है । कुंवारेपन (Virgin) में इसका बाहरी छिद्र एक पतली म्यूकस मेम्ब्रेन से ढका होता है जिसे हाइमन (Hymen) कहते हैं ।

कभी-कभी यह वेजाइनल छिद्र को पूर्ण रूप से ढके रहती है । इस स्थिति को इमपरफोरेट हाइमन कहते हैं । वेजाइना स्त्री प्रजनन तंत्र का प्रमुख भाग है क्योंकि यह पुरुष से सेमिनल द्रव व वीर्य ग्रहण करती है तथा मासिक स्राव को बाहर निकलने में भी मदद करती है । (चित्र 3.60) में कुछ अन्य बाहरी जननांगों को दिखाया गया है ।

इनमें से कुछ:

1. मांसप्यूविस:

त्वचा से ढकी हुई वसा की सतह जिस पर यौवनावस्था में बाल उगते है ।

2. लेबियामेजोरा:

यह त्वचा के बड़े उभार हैं जो बाल से ढके रहते हैं (वृहत भगोष्ठ) इनके अन्दर की सतह पर छोटी-छोटी ग्रन्थियां होती हैं ।

3. लेबिया माइनोरा:

यह वसा के बने हुये दो छोटे ओठ होते हैं । (क्षुद्र भगोष्ठ) ।

4. क्लाइटोरिस:

यह पुरुषों के शिश्न का अवशेष’ माना जा सकता है जो इरेक्टाइल कोशिकाओं से बना होता है । इनके अतिरिक्त वेजाइना के आसपास कई ग्रन्थियाँ स्थित होती है जिनमें वेजाइनल छिद्र के दोनों ओर स्थित बार्थोलिन ग्रन्थियां (Bartholin Glands) प्रमुख हैं । इनमें सूजन अक्सर हो जाती है ।

पेरिनियम:

यह गुदा (Anus) व वेजाइना छिद्र के मध्य स्थित भाग है । यह भाग काफी महत्वपूर्ण है । क्योंकि बच्चे के जन्म के समय इसमें एक चीरा जिसे इपीजियाटमी (Episiotomy) कहते हैं, लगाया जाता है जिससे बच्चे के जन्म में आसानी हो जाती है ।

स्तन:

ये पेक्टोरल पेशियों के ऊपर स्थित होते हैं । यौवनारम्भ (Puberty) के बाद इनके आकार में वृद्धि डिम्ब ग्रंथि के हारमोन इस्ट्रोजन के प्रभाव से होती है । यह वृद्धि दुग्ध ग्रन्थियों की वृद्धि व वसा के जमा होने से हाती है । (चित्र 3.61) । साथ ही निप्पल के आकार में भी वृद्धि हो जाती है । तथा उसके आसपास का भाग (एरिओला) गहरे रंग का हो जाता है ।

15-16 वर्ष की उम्र में स्तनों का विकास पूर्ण हो जाता है । स्तनों के आकार का संबंध इसके कार्यों से न होकर वसा की मात्रा पर निर्भर है । मैमरीग्रन्थियों का कार्य बच्चे के जन्म के पश्चात् दुग्ध का निर्माण करना है । डिम्ब ग्रन्थि के हारमोन मैमेरीग्रन्थि के विकास में मदद करते हैं तथा लैक्टोजन और ऑक्सीटोसिन हारमोन स्तनों की एल्वियोलायी को दुग्ध स्राव के लिए उत्तेजित करते हैं ।

मादा प्रजनन का चक्र:

जीवन का प्रजनन चक्र 12-14 वर्ष की उम्र में होने वाले पहले मासिक स्राब (Menarche) से शुरू होता है तथा मासिक धर्म बन्द होने तक (मीनोपास या क्लाइमेक्टरिक) चलता रहता है जो 48 से 50 वर्ष की उम्र में होता है । इस दौरान लगभग तीस वर्ष के समय में लगातार डिम्ब ग्रन्थियों व गर्भाशय की इन्डोमीट्रियम में परिवर्तन होते रहते हैं । इसके साथ ही हारमोन एफ. एस. एच. (FSH) व एल. एच. (LH) इस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरान का स्राव कराते हैं ।

मासिक चक्र:

इसके भिन्न फेजों (Phases) का नामकरण डिम्ब ग्रन्थियों व इन्डोमीट्रियम में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर किया गया है । यहां इन दोनों में होने वाले परिवर्तनों को बताया गया है । (चित्र 3.62) । दिनों की गिनती मासिक स्राव के पहले दिन को एक मानकर की जाती है । प्राय: 28 दिन का चक्र भिन्न फेजों के लिए इस्तेमाल किया जाता है पर भिन्न औरतों में इसमें कुछ परिवर्तन हो सकते हैं ।

प्रोलीफरेटिव फेज:

रक्तस्राव के पश्चात् (एक से पांच दिन) छठे दिन पर इन्डोमीट्रियम की मोटाई दो मि.मी. से कम होती है । छह से 14 वें दिन तथा इन्डोमीट्रियम में ग्रन्थियों, रक्त नलिकाओं, स्ट्रोमा व इन्डोथीलियम में वृद्धि होती है जिससे इन्डोमीट्रियम चार मि.मी. मोटी हो जाती है । इसी फेज में इस्ट्रोजन की मात्रा भी बढ़ने लगती है ।

जो सर्वाधिक 14 वें दिन होती है । इस बड़ी हुई इस्ट्रोजन के बदले एण्टीरियर पिटयूटरी ल्यूटिनाइजिंग हारमोन का स्राव करती है । 14 वें दिन ही डिम्बोत्सर्जन (Ovulation) भी होता है । डिम्बोत्सर्जन के पश्चात् शरीर के तापमान में 0.3 ये 0.5 डिग्री सैल्सियस की वृद्धि हो जाती है ।

सिक्रीटरी फेज:

डिम्बोत्सर्जन के पश्चात् 15-16 वें दिन इन्डोमीट्रियम सिक्रीटरी हो जाती है । स्पाइरल धमनी अधिक चौड़ी व वृत्ताकार हो जाती है तथा वीनसप्लेक्स में अधिक रक्त इकट्ठा हो जाता है यह 28 वें दिन तक रहता है ।

एल॰एच॰ और एफ॰एस॰एच॰ की रक्त में मात्रा गिरने लगती है अण्डे के निकलने के पश्चात कार्पसल्यूटियम का निर्माण होता है जो अधिक मात्रा में प्रोजेस्टेरान का स्राव करता है । इसकी रक्त में मात्रा चक्र के द्वितीय भाग में लगातार बढ़ती जाती है । इन्डोमीट्रियम निषेचित अण्डे के रोपण के लिए तैयार हो जाती है ।

मासिक धर्म:

यदि अण्डे का निषेचन नहीं हो पाता है तो पहले पांच दिनों में मासिक स्राव शुरू हो जाता है । रक्त स्राव के साथ इन्डोमीट्रियम का ऊपरी 2/3 भाग गिर जाता है । इस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरान की रक्त में मात्रा तेजी से कम होती है तथा स्पाइरल धमनियां सिकुड़ जाती हैं ।

इस फेज में औसत रूप से 40 मि.ली. (10 से 300 मि.ली.) रक्त की हानि होती है । भिन्न हारमोनों के इस चक्र पर प्रभाव को चित्र 3.62 में दिखाया गया है ।

गैमीटो की परिपक्वता:

स्पर्मेटोनिया तथा वूगोनिया (Oogonia) के अपने जनन तंत्र (Reproductive tract) में विकास होता है । तथा वे परिपक्व होते हैं । इस जटिल क्रिया में स्पर्मेटोगोनिया व वूगोनिया में क्रोमोसोमो की संख्या आधी हो जाती है ।

क्योंकि शुरुआत में दोनों में 46 क्रोमोसोम, अर्थात् बूगोनिया में 44 आटोसोम व 2 समान सैक्स क्रोमोसाम (xx) होते हैं, जबकि स्पर्मेटोगोनिया में 44 आटोसोम तथा xy क्रोमोसोम पाये जाते हैं । y क्रोमोसोम में पुरुषत्व की जीन होती है ।

जाइगोट में क्रोमोसोमों की संख्या 46 (44+2) रखने के लिए स्पर्मेटोगोनिया तथा वूगोनिया में रिडक्सन डिवीजन या मियोसिस (Meosis) होना आवश्यक है । अत: परिपक्व र्स्पम व अण्डे में 23 क्रोमोसोम पाये जाते हैं । जिसमें एक सेक्स क्रोमासोम युक्त शुक्राणु से अण्डे का निषेचन हो सकता है जिससे

स्पर्म एक्स + अण्डा एक्स = बच्चा, एक्स एक्स (लड़की)

स्पर्म वाई + अण्डा एक्स = बच्चा, एक्स वाइ (लड़का)

निषेचन | (Fertilization):

नर तथा मादा गैमीटो का मिलन यूटेराइन ट्‌यूब के एम्पुला वाले भाग में होता है । कभी-कभी यह क्रिया गर्भाश्य के बाहर पेल्विक कैविटी में हो सकती है जिससे गर्भाशय के बाहर गर्भाधारण हो जाता है । डिम्बोत्सर्जन के पश्चात् अण्डा केवल 24-48 घंटे ही जीवित रहता है । अत: निषेचन भी इसी समय में हो सकता है ।

स्पर्म मादा के जननांग में प्रवेश करने के पश्चात् केवल कुछ दिन ही जीवित रह सकता है । निषेचन के पश्चात जाइगोट का निर्माण होता है । जाइगोट में तीव्र गति से कोशिकाओं का विभाजन होता है तथा लगभग तीन दिनों में मोरूला का निर्माण होता है जो ब्लास्टोसिस्ट (Blastocyst) में परिवर्तित हो जाता है जिसमें मध्य में स्थित गुहा के अलावा बाहरी व भीतरी  पर्ते होती हैं (चित्र 3.63) ।

इसके बाहरी पर्त की कोशिकाओं को ट्रोफोब्लास्ट (Trophoblast) कहते हैं । ब्लास्टोसिस्ट आराम से फेलापियन अब से होता हुआ गर्भाशय में प्रवेश करता है । लगभग 7 दिन पश्चात् यह प्रोजेस्टेसनल इन्डोमीट्रियम से जुड़ जाता है तथा ट्रोफोब्लास्ट पर्त की क्रिया द्वारा यह इन्डोमीट्रियम में धंस जाता है । दूसरे शब्दों में निषेचित अण्डे का रोपण हो जाता है । रोपण के ठीक बाद ट्रोफोब्लास्ट हारमोन कोरियानिक गौनैडोदापिन का स्राव प्रारंभ कर देता है ।

कोरियानिक गोनैडोट्रापिन कार्पस ल्यूटियम को बनाये रखता है जो इस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरान का स्राव करता रहता है । इस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टेरान की अधिकता से पुन: डिम्बोत्सर्जन व मासिक स्राव नहीं हो पाता है । ब्लास्टोसिस्ट लगातार बंटता जाता है तथा कोशिकामें अपने आप को नियत तरीके से व्यवस्थित कर (इम्व्रियो) भ्रूण का आकार ले लेती हैं । दो गुहायें दो सतहों वाली प्लेट से अलग रहती हैं, यह प्लेट इम्व्रियानिक डिस्क कहलाती है ।

ऊपरी गुहा द्रव युक्त होती है जिसमे बच्चा तैरता है जबकि दूसरी निचले गुहा योक सैक (Yolk Sac) बनाती है । इम्व्रियानिक डिस्क की कोशिकायें जटिल क्रिया द्वारा पहली तीन परतों में बंटकर इक्टोडर्म, मीजोडर्म व इन्डोडर्म का निर्माण करती हैं ।

इन परतों को प्राइमरी जर्म सेल  पर्ते कहते हैं तथा इनसे शरीर के भिन्न अंगों का निर्माण होता है । लगभग 10 हफ्ते के पश्चात् प्लेसेन्टा निम्न हारमोनों का स्राव शुरू करता है । हयूमन कोरियानिक गोनैडोट्रापिन (H.C.G.)- इसका कार्य ल्यूटेनाइजिंग हारमोन की तरह होता है ।

मूत्र में इसकी मात्रा बढ़ते-बढ़ते पिछले मासिक धर्म के 50-60 वें दिन पर अधिकतम होती है जिसके पश्चात् इसकी मात्रा कम हो जाती है तथा बच्चे के जन्म (Delivery) के ठीक पहले शून्य हो जाती है । एच. सी. जी. (H.C.G.) भिन्न अवस्थाओं के निदान (Diagnosis) में मदद करता है । जैसे बच्चे गर्भ में मृत्यु के पश्चात् इसकी मात्रा कम हो जाती है ।

इसके अतिरिक्त कई अन्य हारमोनों का स्राव भी प्ले सेन्टा द्वारा होता है जैसे प्लेसेन्टल लैक्टोजन, इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरान । ये हारमोन बच्चे की सामान्य वृद्धि तथा मां को बच्चे के जन्म व दुग्ध स्राव के लिए तैयार करते हैं ।

गर्भाधारण के साथ कई भौतिक, न्यूरल व इमोशनल परिवर्तन संबंधित होते हैं । इनमें प्रमुख परिवर्तन गर्भाशय के आकार मे लगभग दस गुना वृद्धि है । इसके अतिरिक्त कुछ अन्य परिवर्तनो में बढ़ा हुआ रक्त का आयतन, कार्टियक आउटपुट तथा श्वसन है ।

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