Read this article in Hindi to learn about the functions of male reproductive system in humans.

पुरुष प्रजनन तंत्र के  अन्तर्गत निम्न अंग आते हैं । दो शुक्र ग्रन्यियां (Testis), दो इपीडिडाइमिस, दो सेमिनल डक्ट (Seminal Ducts), दो सेमिनल वेसिकिल, दो इजेकुलेटरी नलियां, प्रोस्टेट ग्रन्थि, वाल्वों यूरिथ्रल ग्रन्थियां (Bulbourethral Gland) और शिश्न (Penis) ।

शुक्र ग्रन्थियां:

यह स्क्रोटम में स्थित अण्डाकार रचनायें हैं जो स्पर्मेटिक कार्ड से स्थिर होते हैं तथा कनेक्टिव टिश्यू सेमिनल डक्ट, टेस्टीकुलर आर्टरी व वेन, लिम्फ वेसल और तन्त्रिकाओं से बना होता है । जन्म के पूर्व (foctal life) शुक्र ग्रन्थियां उदर में स्थित होते हैं जो जन्म के पूर्व नीचे की ओर विस्थापित होकर स्क्रोटम में स्थित हो जाते हैं ।

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स्क्रोटम त्वचा से ढकी हुई थैली की तरह एक रचना है जो प्यूविक सिस्फाइसिस के नीचे दोनों जांघों के सामने स्थित होती है । डारटोस पेशी (Dartos muscle) स्क्रोटम को दो भागों में बांटती है, प्रत्येक में एक शुक्र ग्रन्थि स्थित होती है । प्रत्येक टेस्टिस लगभग चार सेमी॰ लम्बा, तीन सेमी॰ चौडा॰, व दो सेमी॰ मोटा होता है तथा कई मेम्ब्रनों से ढका होता है ।

सबसे अन्दर की कैप्सूल लेयर इसे कई छोटे लोव्यूलों (200 से ज्यादा) में बांटती है । प्रत्येक लोव्यूल में महीन मुड़े हुये सेमिनीफेरैस टयूव्यूल व इन्टरटीशियल या लीडिंग (Leydig cells) पाये जाते हैं । सेमिनीफैरेस टयूव्यूल जुड़कर प्लेक्सस बनाते हैं, जहां सारी उक्त इपीडिडाइमिस में खुलती है । (चित्र 3.52)

शुक्र ग्रन्थि के कार्य:

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1. शुक्राणुओं का निर्माण

2. हारमोन टेस्टोस्टेरान का निर्माण

शुक्राणुओं का निर्माण सेमिनीफेरस टयूव्यूल की सतह की कोशिकाओं (स्पर्मेटोगोनिया) से होता है जो प्रत्येक टयूव्यूल की बाहरी सतह के साथ स्थित होती है । स्पर्मेटोगोनिया में लगातार कोशिकाओं का विभाजन (Mitosis) होकर शुक्राणुओं का निर्माण होता है ।

इन कोशिकाओं में कुछ कोशिकायें केन्द्र के खोखले भाग में जाकर प्राइमरी स्पर्मेटोसाइट बनाती हैं । जो पुन: बंटकर सेकेन्डरी स्पर्मेटोसाइट तथा अन्तमें स्पर्मेटोड (Spermatods) का निर्माण होता है । स्पर्मेटोड में यद्यपि अण्डाणु के निषेचन के लिए सारे क्रोमोसोम होते है, पर यह पूर्णत: परिपक्व नहीं होता है ।

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स्पर्मेटोड परिपक्व होकर एक पूंछ का निर्माण तथा लगभग सभी सेलुलर साइटोप्लाज्म का खात्मा कर परिपक्व स्पर्मेटोजोआ का निर्माण करते हैं । प्रत्येक स्पर्मेटोजोआ (Spermatozoan) में एक सिर, गर्दन, धड़ व पूंछ होती है । (चित्र 3.53) । शुक्र कोष का कार्य अन्य हारमोनों, जिसमें प्रमुख टेस्टोस्टेरान का स्राव है ।

टेस्टोस्टोरान के प्रमुख कार्य:

i. पुरूष के सेकेन्डरी सेक्स गुणों का विकास व उनको बनाये रखना सहायक अंग जैसे प्रोस्टेट, सेमिनल वेसिकल का विकास सेक्सुअल तथा इमोशनल व्यवहार का विकास

ii. प्रोटीन उपापचय-टेस्टोस्टोरान को एक एनावोलिक हारमोन माना जाता है जो प्रोटीन मेटावोलिज्म को बढ़ाता है तथा पेशी व हड्‌डियों के विकास में सहायक है ।

iii. एण्टीरियर पिट्‌यूटरी से FSH और ICSH हारमोनों के स्राव को घटाता है जो शुक्र कोष से शुक्राणुओं व टेस्टोस्टेरान का निर्माण बढ़ाता है ।

शुक्र कोष की नलिकायें:

इपीडिडाइमिस (Epididymis):

शुक्र कोष के शीर्ष पर स्थित प्रत्येक इपीडिडाइमिस में एक मिमी॰ से कम व्यास की लगभग 20 फीट लम्बाई की ट्‌यूब मुड़ी-तुड़ी पड़ी रहती है । यह पतली नली है, जो शुक्रकोष से शुक्राणुओं को वास डिफरेन्स में जाने में मदद करती है । इपीडिडाइमिस शुक्राणुओं को थोड़े समय में इकट्‌ठा करता है । शुक्राणु यहीं परिपक्व होते हैं ।

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वासडिफर्रेस:

यह इपीडिडाइमिस का अगला भाग है जो आकार में बड़ा तथा सीधा होता है । ये इन्गवाइनल कैनाल से गुजरकर जहां यह फाइर्वस ट्‌यूब में बन्द होता है व मूत्राशय की पिछली सतह पर खुलती है । सेमिनल वेसिकलो की नलियां वास डिफरेंस से मिलकर इजेकुलेटरी डक्ट बनाते हैं (चित्र 3.54) ।

इजेकुलेटरी डक्ट प्रोस्टेटग्रन्थि से होकर यूरिथ्रा में खुलती है । सेमिनल वेसिकल, प्रोस्टेट और वल्वोयूरिथ्रल ग्रन्थियां सहायक प्रजनन अंग हैं । इनके स्राव स्पर्म को भोजन व उचित PH प्रदान करता है । सीमेन से स्पर्मेटोजोवा व सभी सहायक ग्रन्थियों के स्राव होते हैं ।

सीमेन में फ्रेक्टोज, प्रोस्टाग्लेडिन, कैल्शियम आदि पाये जाते हैं, तथा इसका PH क्षारीय होता है । मानव का सीमेन स्खलन के समय द्रव होता है, जो बाहर या वेजाइना में जम जाता हे । तथा लगभग 15-20 मिनट बाद इसमें सैकेन्ड्री लिक्वीफिकेसन द्वारा पुन: द्रव रूप में आ जाता है । इसके अतिरिक्त सक्रोटम तथा शिश्न भी सहायक प्रजनन अंग हैं ।

शिश्न फाइब्रसकवरिंग में इरेक्टाइल टिश्यू होता है । (चित्र 3.55) शिश्न में तीन लम्बे चैम्बर होते हैं जो स्पन्जी टिश्यू का एक त्रिकोण बनाते हैं । ऊपरी सिरा या एपेक्स नीचे स्थित होता है । दो बड़े चैम्बरों को कारपोरा केवरनोस्रा तथा कारपोरा स्पान्जिओसा कहते हैं । शिश्न का अगला मोटा भाग ग्लांस कहलाता है ।

इसके ऊपर की त्वचा पीछे की ओर जाने वाली होती है इसे प्रीप्यूस (Prepuce) कहते हैं । मूत्रनली जो मूत्र व सीमेन दोनों को बाहर निकालती है यह कारपस स्वान्जिओसा के मध्य स्थित होती है तथा इसके टिप पर खुलती है । शिश्न व स्क्रोटम पुरूष के जननांग बनाते हैं । पुरुष जननांगों की रचना व कार्यो के अध्ययन के पश्चात पुरुष जनन क्रिया का सारांश कुछ इस प्रकार है ।

दो प्रमुख क्रियायें हैं:

स्पर्मेटोजेनसिस और इन स्पर्मों को मादा जननागों में डालना जिससे अण्डे का निषेचन हो सके । यह कार्य संभोग (Copulation or Intercourse) द्वारा होता है तथा इसके दो भाग होते है:

(a) शिश्न का खड़ा होना (Erection)

(b) वीर्य स्खलन (Ejaculation)

शिश्न का खड़ा होना एक पैरासिम्पैथेटिक रिफलेक्स है जो स्पर्श और दृश्य के न्यूरो ह्यूमोरल स्टीमुली द्वारा शुरू होता है । पिट्‌यूटरी गोनेडोट्रापिन निकालती है जो बदले में टेस्टोस्टेरान का स्राव कराते हैं । इससे शिश्न की धमनियों तथा अर्टिरिओल चौड़े हो जाते है तथा उनमें अधिक मात्रा में रक्त इकठ्‌ठा होकर शिश्न को बड़ा तथा कड़ा कर देता है जिससे इसे मादा के जननांग में घुसाया जा सके ।

वीर्य स्खलन भी एक रिफलेक्स है जो इन्हीं स्टीमुलाई द्वारा शुरू होता है पर इसमें सिम्पैथेटिक तन्त्र के उत्तेजन से इपीडिडाइमिस डक्टा डिफरेन्सिया, सेमिनलडक्ट तथा प्रोस्ट्रेट के आसपास स्थित स्मूथ मसल सिकुड़ती है तथा वीर्य को इजैकुलेटरी डक्ट से यूरिथ्रा में ढकेलती है ।

स्फिन्कटर के सिकुड़ने से इसका अन्य निकास बन्द हो जाते है । सिर्फ शिश्न की तरफ वाला खुला रहता है । बड़ी हुई हृदयगति, श्वसन दर तथा बड़ा हुआ रक्तदाब तीव्र इमोशनल उत्तेजना पैदा करते हैं जो क्लाइमेक्स या पूर्णानन्द (Orgasm) के लिए आवश्यक है । इसके पश्चात वीर्य स्खलित हो जाता है ।

पुरुष में बच्चा पैदा करने की शक्ति कई चीजों पर निर्भर करती है जैसे- वीर्य की भौतिक और रासायनिक बनावट, सामान्य शुक्राणुओं की गति व संख्या । यद्यपि केवल एक शुक्राणु ही अण्डाणु को निषेचित करने के लिए पर्याप्त है पर यह देखा गया है कि जब शुक्राणुओं की संख्या 500 लाख/मिली॰ वीर्य से कम हो जाती है तो स्टरलिटी हो जाती है । संख्या, आयतन, पी॰एच॰ के अलावा वीर्य के कुछ अन्य तत्व भी निषेचन के लिए आवश्यक हैं ।

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